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Data Communication Networking Hindi

What is Data Communication Networking

डाटा कम्युनिकेशन क्या है?


Data Communication - An Introduction


डाटा कम्युनिकेशन क्या है?

कम्युनिकेशन क्या हैं? | What is Communication?

कम्युनिकेशन को हिंदी में संचार कहते हैं किसी जानकारी या सूचनाओं का आदान प्रदान करना संचार कहलाता है। किसी माध्यम से हम अपने जानकारी किसी दूसरे तक पहुंचाते हैं तो इसे संचार (Communication) कहते हैं। कम्युनिकेशन से किसी भी सूचना का आदान-प्रदान बहुत ही आसान तरीके से होता है।

Communication (संचार) का अर्थ सूचनाओं का आदान प्रदान करने से हैं। लेकिन कोई भी सूचना तब तक उपयोगी नहीं हो सकती जब तक कि इन सूचनाओं का आदान प्रदान न हो। जब दो या दो से अधिक व्यक्ति आपस में कुछ सार्थक चिह्नों, संकेतों या प्रतीकों के माध्यम से विचारों या भावनाओं का आदान-प्रदान करते हैं तो उसे कम्युनिकेशन या संचार कहते हैं।

हमारे पास कम्युनिकेशन के सबसे प्रबल माध्यम में हमारी आवाज और भाषा है और इसके वाहक के रूप में पत्र, टेलीफोन, फैक्स, टेलीग्राम, मोबाइल तथा इन्टरनेट इत्यादि हैं। पहले सूचनाओं या संदेश को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने में काफी समय लगता था, किन्तु वर्तमान में संदेशों का आदान प्रदान बहुत ही आसान हो गया है। सूचना प्रोद्योगिकी के कारण किसी भी सन्देश को कुछ ही सेकंड्स में सारी दुनिया में भेजा जाना मुमकिन हो गया है।

कम्युनिकेशन एवं सूचना प्रोद्योगिकी | Communication and Information Technology

कम्युनिकेशन का उद्देश्य संदेशो तथा विचारों का आदान प्रदान है। इस कम्युनिकेशन को तेज व सरल बनाने में सूचना प्रोद्योगिकी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। कंप्यूटर, मोबाइल, कम्युनिकेशन डिवाइस एवं इन्टरनेट के द्वारा हम पूरी दुनिया में कही भी व किसी भी समय कम से कम समय एवं खर्च में सूचनाओं व विचारों का आदान प्रदान कर सकते हैं।

कम्युनिकेशन सिस्टम के लिए मूल रूप से तीन शब्दों का उपयोग किया जाता है:
     डाटा (Data)
     सूचना या इनफार्मेशन (Information)
     संकेत या सिग्नल (Signal)

डाटा (Data)

डाटा वह सामग्री है, जिसके माध्यम से सूचना / इनफार्मेशन को ट्रांसफर किया जाता है। डाटा किसी भी प्रकार का हो सकता है जैसे क्रमबद्ध संख्याएँ, टेक्स्ट, चित्र/इमेजेस, ऑडियो वीडियो आदि।

सूचना / इनफार्मेशन (Information)

सूचना / इनफार्मेशन: सूचना / इनफार्मेशन शब्द का का अर्थ है, डाटा की वेल्यू अथवा डाटा को किस तरह से समझा जा रहा है।

सिग्नल (Signal)

जिस माध्यम द्वारा डाटा भेजा अथवा प्राप्त किया जा रहा है वह सिग्नल कहलाता है, जैसे इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल्स जिनका प्रयोग किसी भौतिक माध्यम द्वारा डाटा प्रेषित करने के लिए किया जाता है। डाटा कम्यूनिकेशन सिस्टम का आउटपुट तीन विशेषताओं - डिलेवरी, एक्यूरेसी या शुद्वता और समयबद्वता पर निर्भर करती है।

डिलेवरी (Delivery)

डिलेवरी (Delivery) - सही गंतव्य पर डाटा की डिलेवरी और इसे केवल उसी डिवाईस या यूजर तक पहुँचना चाहिए जिसके लिए भेजा जा रहा हो।

शुद्धता (Accuracy)

शुद्धता (Accuracy)- डाटा एक्यूरेसी (शुद्धता) तथा पूर्णता के साथ डिलिवर होना चाहिए। ट्रांसमिशन के दौरान परिवर्तित हुआ अथवा अशुद्ध डाटा किसी काम का नहीं रहता है।

समयबद्वता (Timeliness)

समयबद्धता (Timeliness) - डाटा की डिलेवरी समयबबद्ध तरीके से हो जानी चाहिए। विलंब से डिलिवर होने वाले डाटा का कोई उपयोग नहीं रहता है। वीडियो और ऑडियो की स्थिति में, टाईमली डिलेवरी का अर्थ है, डाटा के तैयार होते ही इसे बिना किसी विलंब के उसी क्रम में डिलेवर हो जाना, जिस क्रम में वह जनरेट हुआ है। इस तरह की डिलेवरी को रीयल टाईम ट्रांसमिशन भी कहते है।

संचार प्रक्रिया| Communication Process

कम्युनिकेशन का मुख्य उद्देश्य डाटा व सूचनाओ का आदान प्रदान करना होता है| डाटा कम्युनिकेशन से तात्पर्य दो समान या विभिन्न डिवाइसों के मध्य डाटा का आदान प्रदान से है अर्थात कम्युनिकेशन करने के लिए हमारे पास समान डिवाइस होना आवश्यक है |

कम्युनिकेशन प्रोसेस क्या है?

संचार प्रक्रिया (Communication Process ) में सूचना का प्रेषक (Sender), सूचना का रिसीवर (Reciever), संचार के लिए उपयोग की जाने वाली भाषा (Medium), और संचार को स्थापित करने के लिए उपयोग किया जाने वाला माध्यम (Protocol) शामिल है। कंप्यूटर के बीच संचार भी एक समान प्रक्रिया का अनुसरण करता है। किसी कम्युनिकेशन प्रोसेस के 5 मुख्य तत्व (Element) होते हैं|
    संदेश (Message)
    प्रेषक (Sender)
    माध्यम (Medium)
    प्राप्तकर्ता (Receiver)
    प्रोटोकॉल (Protocol)

कम्युनिकेशन के प्रकार | Mode of Communication

जिस प्रकार सड़क पर वन वे ट्रेफिक या टू वे ट्रेफिक होता है, उसी प्रकार कम्युनिकेशन चैनल के मोड होते हैं। कम्युनिकेशन चैनल तीन प्रकार के होते हैं:-
    सिम्पलेक्स (Simplex),
    हाफ ड्यूप्लेक्स (Half Duplex)
    फुल ड्यूप्लेक्स (Full Duplex)|

Mode of Communication

सिम्पलेक्स (Simplex)

इस अवस्था में डाटा का संचरण सदैव एक ही दिशा में होता हैं| अर्थात हम अपनी सूचनाओ को केवल भेज सकते है प्राप्त नहीं कर सकते सिम्पलेक्स कम्युनिकेशन कहलाता हैं | उदाहरणार्थ- कीबोर्ड, कीबोर्ड से हम केवल सूचनाये भेज सकते है प्राप्त नहीं कर सकते |

अर्द्ध ड्यूप्लेक्स (Half Duplex)

इस अवस्था में डाटा का संचरण दोनों दिशाओ में होता है लेकिन एक समय में एक ही दिशा में संचरण होता है| यह अवस्था वैकल्पिक द्वि-मार्गी (Two way alternative) भी कहलाती है| अर्थात् इस अवस्था में हम अपनी सूचनाओ को एक ही समय में या तो भेज सकते है या प्राप्त कर सकते है| उदाहरणार्थ- हार्डडिस्क (Hard disk), हार्डडिस्क से डाटा का आदान प्रदान अर्द्ध ड्यूप्लेक्स (Half Duplex) अवस्था में होता है| जब हार्डडिस्क पर डाटा संगृहीत (Save) किया जाता है तो उस समय डाटा को हार्डडिस्क से पढ़ा नहीं जा सकता है और जब हार्डडिस्क से डाटा को पढ़ा जाता है तो उस समय हम डाटा को संगृहीत (Save) नहीं कर सकते |

पूर्ण ड्यूप्लेक्स (Full Duplex)

इस अवस्था में डाटा का संचरण एक समय में दोनों दिशाओं में संभव होता है हम एक ही समय में दोनों दिशाओ में सूचनाओं का संचरण कर सकते है | अर्थात हम एक ही समय में सूचनाएं भेज भी सकते है और प्राप्त भी कर सकते है पूर्ण ड्यूप्लेक्स (Full Duplex) कहलाता हैं | उदाहरणार्थ- Smart Phone

डेटा कम्यूनिकेशन / ट्रांसमिशन के माध्यम | Medium of Data Communication / Transmission

ट्रांसमिशन मीडियम / माध्यम से डाटा को एक डिवाइस से दूसरे डिवाइस में भेजा जाता है। एक कंप्यूटर से टर्मिनल या टर्मिनल से कंप्यूटर तक डाटा भेजने अथवा प्राप्त करने के लिए किसी माध्यम (Medium) की आवश्यकता होती है जिसे कम्यूनिकेशन लाइन या डाटा लिंक कहते हैं। ट्रांसमिशन मीडियम निम्न प्रकार के होते हैं:–
    ट्विस्टेड पेयर केबल (Twisted Pair Cable)
    को-एक्सेल केबल (Coaxial-Cable)
    ऑप्टिकल फाइबर (Optical Fiber)
    माइक्रोवेव ट्रांसमिशन (Microwave Transmission)
    उपग्रह संचार (Satellite Communication)

ट्विस्टेड पेयर केबल (Twisted Pair Cable)

ट्विस्टेड पेयर केबल (Twisted Pair Cable) में प्लास्टिक या टेफ्लॉन जैसी इन्सुलेट सामग्री के साथ कॉपर वायर चार जोड़े / पेयर होते हैं, जो कि एक साथ मुड़ जाते हैं। तारों का घुमाव बाहरी स्रोतों से विद्युत चुम्बकीय हस्तक्षेप / इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटरफेरेंस को कम करता है। कम लागत की वजह से ट्विस्टेड पेयर केबलिंग का इस्तेमाल अक्सर डेटा नेटवर्क में शॉर्ट और मीडियम लेंथ कनेक्शन के लिए किया जाता है।

ट्विस्टेड पेयर केबल

ट्विस्टेड पेयर केबल दो प्रकार की होती है- शील्डेड ट्विस्टेड पेयर (एसटीपी) (Sheilded Twisted Pair), और अनशील्डेड ट्विस्टेड पेयर (यूटीपी) (Unsheilded Twisted Pair)।

शील्डेड ट्विस्टेड पेयर (एसटीपी) (Sheilded Twisted Pair) केबल में कॉपर वायर के पेयर और बाहरी आवरण के बीच एक मेटल फॉयल की एक अतिरिक्त परत होती है। यह मेटल फॉयल बाहरी हस्तक्षेप से अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करती है।

अनशील्डेड ट्विस्टेड पेयर (यूटीपी) (Unsheilded Twisted Pair) केबल 100 मीटर तक की कम दूरी पर डाटा कम्युनिकेशन के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला माध्यम है। UTP केबल में चार जोड़े तारों में से, केवल दो जोड़े संचार के लिए उपयोग किए जाते हैं। UTP केबल को विभिन्न श्रेणियों में परिभाषित किया गया है। आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला यूटीपी केबल कैट -5 (CAT-5) , कैट-6 (CAT-6) केबल हैं , जिनका उपयोग तेज ईथरनेट के साथ किया जाता है।

को-एक्सियल केबल (Coaxial-Cable)

को-एक्सियल केबल (Coaxial-Cable) में एक सिंगल इंटरनल कंडक्टर होता है जो विद्युत संकेतों को प्रसारित करता है; बाहरी कंडक्टर अर्थिंग के रूप में कार्य करता है। दो कंडक्टर इन्सुलेशन द्वारा अलग किए जाते हैं। यह उच्च गुणवत्ता के संचार के माध्यम है. ये जमीन या समुद्र के नीचे से ले जाए जाते हैं. इस कंडक्टर के ऊपर तार की एक जाली होती हैं जिसके भी ऊपर एक और कंडक्टर की परत होती हैं.

Coaxial-Cable

ये टेलिफोन तार की तुलना मे बहुत महंगा होता है पर ये अधिक डेटा को ले जा सकता है. इसका उपयोग केवल टीवी नेटवर्क या फिर कंप्यूटर नेटवर्क मे किया जाता हैं.

ऑप्टिकल फाइबर (Optical Fiber)

ऑप्टिकल फाइबर का उपयोग बड़ी दूरी पर जानकारी के प्रसारण के लिए किया जा रहा है. यह एक नई तकनीक हैं जिसमे धातु के तार या केबल के जगह विशिष्ट प्रकार के ग्लास फाइबर का उपयोग किया जाता हैं. ऑप्टिकल फाइबर विद्युत संकेतों के बजाय डेटा को प्रकाश संकेतों के रूप में प्रसारित करता है। ये बहुत ही हलकी और और बहुत ही तेजी से डाटा अदान प्रदान करने मे कारगर होती हैं. यह प्रकाश को आधार बना कर उसी के माध्यम से डाटा को भेजती है. यह पूर्ण आंतरिक परावर्तन के सिद्धांत पर कार्य करता हैं.

Optical Fiber Cable

एक ऑप्टिकल फाइबर केबल में तीन परतें होती हैं: कोर (CORE) - ऑप्टिकल फाइबर कंडक्टर (ग्लास) होता है जो प्रकाश को प्रसारित करता है. क्लैडिंग (CLADDING) - एक ऑप्टिकल मटेरियल जो कोर को बाहर निकलने से रोकने के लिए कोर को कवर करती है, और जैकेट (JACKET) - फाइबर को किसी भी होने वाले नुकसान से बचाने के लिए प्लास्टिक से बना बाहरी आवरण।

माइक्रोवेव ट्रांसमिशन (Microwave Transmission)

इस सिस्टम मे सिग्नल रेडियो सिग्नल की तरह संचारित किये जाते हैं. माइक्रोवेव ट्रांसमिशन एक माइक्रोवेव लिंक पर सूचना प्रसारित करने की तकनीक है। माइक्रोवेव में रेडियो तरंगों की तुलना में उच्च आवृत्ति की तरंगें होती है। सभी दिशाओं (जैसे रेडियो तरंगों) में प्रसारण के बजाय, माइक्रोवेव प्रसारण को एक ही दिशा में ट्रांसमिट किया जा सकता है।

Microwave Transmission

माइक्रोवेव का उपयोग करते समय ट्रांसमीटर और रिसीवर के बीच एक स्पष्ट मार्ग होता है। एक सिस्टम मे डाटा एक सीधी रेखा मे गमन करती है तथा एंटीना की भी आवश्कता होती हैं. लगभग तीस किलोमीटर पर एक रिले स्टेशन की भी जरुरत होती है. इसका उपयोग टीवी प्रसारण और सेल्युलर नेटवर्क मे किया जाता हैं. यह स्टैंडर्ड टेलिफोन लाइन और को-एक्सेल केबल की तुलना मे तीव्र गति से संचार अदान प्रदान करता हैं.

उपग्रह संचार (Satellite Communication)

उपग्रह के साथ रेडियो फ्रिक्वेंसी ट्रांसमिशन को मिलाकर लंबी दूरी तक संचार प्रदान किया जा सकता है। जियोसिंक्रोनस उपग्रहों को पृथ्वी की सतह के ऊपर 36,000 किमी की दूरी पर पृथ्वी के रोटेशन के साथ सिंक्रोनाइज़ की गई एक कक्षा में रखा गया है। पृथ्वी से देखे जाने पर जियोसिंक्रोनस उपग्रह स्थिर दिखाई देते हैं। उपग्रह में ट्रांसपोंडर होते हैं जो आरएफ संकेतों को प्राप्त कर सकते हैं और उन्हें एक अलग कोण पर जमीन पर वापस भेज सकते हैं। समुद्र के एक तरफ एक ग्राउंड स्टेशन उपग्रह को सिग्नल भेजता है जो बदले में समुद्र के दूसरी तरफ ग्राउंड स्टेशन को सिग्नल भेजता है. इसका उपयोग उपग्रह फोन, टीवी, इन्टरनेट और कई वैज्ञानिक कारण से किया जाता हैं.

पग्रह संचार (Satellite Communication)

उपग्रह संचार तीव्र गति के डेटा संचार का माध्यम है. यह लंबी दूरी के संचार के लिए आदर्श माना जाता हैं. अंतरिक्ष मे स्थित उपग्रह को जमीन पर स्थित स्टेशन से सिग्नल भेजा जाता है. उपग्रह उस सिग्नल का विस्तार कर दूसरे जमीनी स्टेशन को पुनः भेजता है. एक सिस्टम मे विशाल डेटा के समूह को कम समय मे अधिकतम दूरी पर भेजा जाता हैं.












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उपरोक्त नोट्स आपको डाटा कम्युनिकेशन क्या है, डाटा कम्युनिकेशन के प्रकार, डाटा कम्युनिकेशन की विधियाँ, कम्युनिकेशन के माध्यम , डाटा कम्युनिकेशन मीडियम आदि के बारे में जानकारी हेतु सहायक होंगे. अगले टॉपिक में कंप्यूटर नेटवर्किंग एवं टोपोलॉजी (Computer Communication) का अध्ययन करेंगे. 


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Computer Programming Language Hindi

प्रोग्रामिंग लैंग्वेज का परिचय

कंप्यूटर प्रोग्रामिंग लैंग्वेज क्या हैं?


Programming Language in Hindi

Computer Programming Language - An Introduction


कंप्यूटर प्रोग्रामिंग लैंग्वेज क्या हैं? | What is Computer Programming Language?

भाषाएँ संचार का एक साधन हैं। सामान्यतः लोग लैंग्वेज का उपयोग करके एक दूसरे के साथ बातचीत करते हैं। इसी आधार पर लैंग्वेज द्वारा कम्प्यूटर के साथ संचार किया जाता है। यह लैंग्वेज उपयोगकर्ता और मशीन दोनों के द्वारा समझी जाती है। प्रत्येक लैंग्वेज की तरह जैसे कि अंग्रेज़ी, हिन्दी के अपने व्याकरण के नियम हैं, उसी प्रकार से प्रत्येक कम्प्यूटर लैंग्वेज भी नियमों द्वारा बँधी हुई है, जिन्हें उस लैंग्वेज का सिंटैक्स (Syntax) कहा जाता है। कम्प्यूटर से संचार करने के दौरान उपयोगकर्ता के लिए वे सिंटैक्स आवश्यक होते हैं।

 कंप्यूटर प्रोग्रामिंग लैंग्वेज क्या हैं?

प्रोग्रामिंग लैंग्वेज (Programming Language) में कुछ विशेष शब्द (Keywords) एवं उनको लिखने के नियम होते हैं, जो कम्प्यूटर को गणना और दिए गए कार्यों को पूर्ण करने के लिए होता है। प्रत्येक प्रोग्रामिंग लैंग्वेज में कीवर्ड का एक सेट और प्रोग्राम के अनुसार निर्देशों के लिए सिंटेक्स होता है।

प्रोग्रामिंग लैंग्वेज (Programming Language) को प्रोग्रामर (जो प्रोग्राम लिख रहा है) और कम्प्यूटर दोनों द्वारा समझा जाना चाहिए। एक कम्प्यूटर 0 और 1 की लैंग्वेज / मशीन लैंग्वेज को समझता है, जबकि प्रोग्रामर अंग्रेजी जैसी लैंग्वेज को आसानी से समझ सकता है। प्रोग्रामिंग लैंग्वेज आमतौर पर उच्च स्तरीय भाषाओं जैसे COBOL, BASIC, FORTRAN, C, C ++, Java आदि को संदर्भित करती है।

प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के प्रकार | Types of Programming Language

प्रोग्रामिंग लैंग्वेज (Programming Language) कई प्रकार की होती हैं। कुछ लैंग्वेज को हम समझ सकते हैं तथा कुछ को केवल कम्प्यूटर ही समझ सकता है। जिन भाषाओं को केवल कम्प्यूटर समझता है वे आमतौर पर निम्नस्तरीय लैंग्वेज (Low level Language) कहलाती है तथा जिन भाषाओं को हम समझ सकते है उन्हें उच्चस्तरीय लैंग्वेज (High level language) कहते है।

 प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के प्रकार

प्रोग्रामिंग लैंग्वेज (Programming Language) को मुख्य रूप से निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है।
  लो लेवल प्रोग्रामिंग लैंग्वेज (Low Level Programming Language)
  मशीन लैंग्वेज (Machine Language) एवं असेंबली लैंग्वेज (Assembly Language)
  हाई लेवल प्रोग्रामिंग लैंग्वेज (High Level Programming Language)

लो लेवल प्रोग्रामिंग लैंग्वेज (Low Level Programming Language)

निम्नस्तरीय प्रोग्रामिंग लैंग्वेज (Low level Programming Language) में दिए गए निर्देशों को मशीन कोड में बदलने के लिए किसी भी अनुवादक (Translator) की आवश्यकता नहीं होती है। लो लेवल लैंग्वेज कोड 0 और 1 की फॉर्म मे होते हैं जिन्हें बाइनरी कोड (Binary Code) कहा जाता है। लेकिन इनका उपयोग प्रोग्रामिंग (Programming) में करना बहुत ही कठिन है। इसका उपयोग करने के लिए कम्प्यूटर के हार्डवेयर (Hardware) के विषय में गहरी जानकारी होना आवश्यक है। यह प्रोग्रामिंग में बहुत समय लेता है और इसमें त्रुटियों (Error) की सम्भावना अत्यधिक होती है।

लो लेवल प्रोग्रामिंग लैंग्वेज दो प्रकार की होती हैं :
1- मशीन लैंग्वेज (Machine Language)
2- असेम्बली लैंग्वेज (Assembly Language)

मशीन लैंग्वेज (Machine Language)

मशीन लैंग्वेज (Machine Language) वह लैंग्वेज है जिसे कम्प्यूटर आसानी से समझ सकता है लेकिन प्रोग्रामर को समझना मुश्किल है। मशीन लैंग्वेज (Machine Language) में केवल संख्याएँ होती हैं। हर तरह के CPU की अपनी एक अलग मशीन की लैंग्वेज होती है।

मशीन लैंग्वेज (Machine Language) में लिखा गया एक प्रोग्राम बाइनरी अंकों या बिट्स का एक संग्रह है जिसे कम्प्यूटर पढ़ता है, समझता है, और व्याख्या करता है। इस प्रोग्राम को सीधे कम्प्यूटर के CPU द्वारा प्रोसेस किया जाता है। इसे मशीन कोड या ऑब्जेक्ट कोड के रूप में भी जाना जाता है। यह बाइनरी डिजिट 0 और 1 के रूप में लिखा जाता है। मशीन लैंग्वेज में लिखे गए प्रोग्राम की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  कम्प्यूटर सिस्टम (Computer System) सिर्फ अंको के संकेतो को समझाता है, जो कि बाइनरी डिजिट 1 या 0 होता है अत: कम्प्यूटर को निर्देश (Instruction) सिर्फ बाइनरी कोड 1 या 0 में ही दिया जाता है।

  कम्प्यूटर मशीन लैंग्वेज में लिखे गए प्रोग्राम को सीधे समझ सकता है। प्रोग्राम के अनुवाद की जरूरत नहीं है।

  मशीन लैंग्वेज में लिखे गए प्रोग्राम को कम्प्यूटर द्वारा बहुत तेज़ी से एक्सीक्यूट किया जा सकता है क्योंकि इसमें अनुवाद की आवश्यकता नहीं है।

  मशीन लैंग्वेज मशीन के लिए सरल होती है और प्रोग्रामर के लिए कठिन होती है।

  मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम का रख रखाव भी बहुत कठिन होता है, क्योंकि इसमें त्रुटि (Error) की संभावनाएँ अधिक होती है।

  मशीन लैंग्वेज कम्प्यूटर के हार्डवेयर द्वारा परिभाषित की जाती है, यह कम्प्यूटर पर उपयोग किए जा रहे प्रोसेसर पर निर्भर करता है अतः एक कम्प्यूटर पर लिखा गया प्रोग्राम दूसरे कम्प्यूटर पर भिन्न प्रोसेसर के साथ काम नहीं कर सकता है।

  मशीन लैंग्वेज (Machine Language) प्रत्येक कम्प्यूटर सिस्टम पर अलग-अलग कार्य करती है, इसलिए एक कम्प्यूटर के कोड दूसरे कम्प्यूटर पर नही चल सकते। इसी लिए इसे मशीन डिपेंडेंट भी कहा जाता है।

  मशीन लैंग्वेज में प्रोग्राम लिखना मुश्किल है क्योंकि इसे बाइनरी कोड में लिखा जाना है। उदाहरण के लिए, 00010001 11001001। ऐसे कार्यक्रमों को संशोधित / परिवर्तित करना भी मुश्किल होता है।

असेंबली लैंग्वेज (Assembly Language)

असेंबली लैंग्वेज (Assembly Language), मशीन लैंग्वेज और उच्च-स्तरीय लैंग्वेज के बीच आती है। वे मशीन लैंग्वेज के समान हैं, लेकिन प्रोग्राम करने में आसान हैं, क्योंकि वे प्रोग्रामर को संख्याओं के स्थान पर कीवर्ड की अनुमति देते हैं।

असेंबली लैंग्वेज (Assembly Language) में लिखा गया प्रोग्राम किसी प्रोसेसर (सीपीयू) को प्रोग्राम करने के लिए आवश्यक मशीन कोड के सिम्बल्स / कीवर्ड का उपयोग करता है, जिसे सीपीयू निर्माता द्वारा डिफाइन किया जाता है, जो प्रोग्रामर को निर्देशों, रजिस्टर आदि को याद रखने में मदद करता है। असेम्बली लैंग्वेज में निर्देश अंग्रेजी के शब्दों के रूप में दिए जाते है, जैसे की NOV, ADD, SUB आदि, इसे न्यूमोनिक कोड (Mnemonic Code) कहते है ।

इसमें अंग्रेजी जैसे कीवर्ड जैसे LOAD, ADD, SUB आदि को प्रोग्राम में लिखने के लिए उपयोग किया जाता है। असेंबली लैंग्वेज (Assembly Language) में लिखे गए कार्यक्रम की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  असेंबली लैंग्वेज प्रोग्राम मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम की तुलना में लिखना आसान होता है, क्योंकि असेंबली लैंग्वेज प्रोग्राम मशीन कोड के शॉर्ट, इंग्लिश जैसे कीवर्ड का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए:

ADD 2, 3

LOAD A 

SUB A, B

 असेंबली लैंग्वेज में लिखा गया प्रोग्राम सोर्स कोड है, जिसे मशीन कोड में बदलना होता है, जिसे ऑब्जेक्ट कोड भी कहा जाता है।

 असेंबली लैंग्वेज प्रोग्राम की प्रत्येक लाइन को मशीन कोड की एक या एक से अधिक लाइनों में बदला जाता है। इसलिए असेंबली लैंग्वेज प्रोग्राम भी मशीन पर निर्भर (Machine Dependent) हैं।

 असेंबली लैंग्वेज प्रोग्राम आम तौर हाई स्पीड एवं एफिशिएंसी के लिए तैयार किए जाते हैं ।

हाई लेवल प्रोग्रामिंग लैंग्वेज (High Level Programming Language)

लो लेवल लैंग्वेज़ के लिए हार्डवेयर के विस्तृत ज्ञान की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह मशीन निर्भर होती है। इन मुश्किलों को दूर करने के लिए हाई लेवल लैंग्वेज़ का विकास किया गया है, जो किसी भी समस्या को हल करने के लिए सामान्य और आसानी से समझे जाने योग्य अंग्रेजी के कीवर्ड एवं सेंटेंस का उपयोग करती है। हाई लेवल लैंग्वज़ कम्प्यूटर पर निर्भर नहीं होती है और इसमें प्रोग्रामिंग करना बहुत सरल होता है।

हाई लेवल लैंग्वेज़ (High Level Language) प्रोग्रामर के लिए समझना और उपयोग करना आसान है लेकिन कम्प्यूटर के लिए कठिन है। हाई लेवल प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के प्रोग्राम को मशीन लैंग्वेज में परिवर्तित करने की आवश्यकता है ताकि कम्प्यूटर इसे समझ सके। ऐसा करने के लिए हाई लेवल प्रोग्राम को कंपाइल एवं ट्रांसलेट किया जाता है।

हाई लेवल प्रोग्रामिंग लैंग्वेज

हाई लेवल लैंग्वेज की विशेषताएँ निम्न हैं :

 मशीन लैंग्वेज या असेंबली लैंग्वेज की तुलना में प्रोग्राम उच्च स्तरीय भाषाओं में लिखना, पढ़ना या समझना आसान है। C ++ या बेसिक में लिखा गया एक प्रोग्राम मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम की तुलना में समझना आसान है।

 उच्च-स्तरीय भाषाओं में लिखे गए कार्यक्रम स्रोत कोड (Source Code) होते हैं जो ट्रांसलेटर या कम्पाइलर जैसे सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके ऑब्जेक्ट कोड / मशीन कोड में परिवर्तित हो जाते हैं।

 उच्च-स्तरीय भाषाओं में लिखे गए प्रोग्राम आसानी से एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर में चलाए जा सकते हैं इसीलिए ये पोर्टेबल होते हैं।

तृतीय पीढ़ी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज (Third Generation Programming Language) एवं चतुर्थ पीढ़ी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज (Fourth Generation Programming Language)

तृतीय पीढ़ी भाषाएँ (Third Generation Language) पहली भाषाएँ थी जिन्होंने प्रोग्रामरो को मशीनी तथा असेम्बली भाषाओ में प्रोग्राम लिखने से आजाद किया। तृतीय पीढ़ी की भाषाएँ मशीन पर आश्रित नही थी इसलिए प्रोग्राम लिखने के लिए मशीन के आर्किटेक्चर को समझने की जरुरत नही थी । इसके अतिरिक्त प्रोग्राम पोर्टेबल हो गए, जिस कारण प्रोग्राम को उनके कम्पाइलर व इन्टरप्रेटर के साथ एक कम्प्यूटर से दुसरे कम्प्यूटर में कॉपी किया जा सकता था। तृतीय पीढ़ी के कुछ अत्यधिक लोकप्रिय भाषाओ में फॉरटरैन (FORTRAN), बेसिक (BASIC), कोबोल (COBOL), पास्कल (PASCAL), सी (C), सी++ (C++) आदि सम्मिलित है ।

प्रोग्रामिंग लैंग्वेज

चतुर्थ पीढ़ी लैंग्वेज (Fourth Generation Language), तृतीय पीढ़ी के लैंग्वेज से उपयोग करने में अधिक सरल है । सामान्यत: चतुर्थ पीढ़ी की भषाओ में विजुअल (Visual) वातावरण होता है जबकि तृतीय पीढ़ी की भाषाओ में टेक्सचुअल (Textual) वातावरण होता था । विजुअल एनवायरनमेंट में, प्रोग्रामर बटन, लेबल तथा टेक्स्ट बॉक्स जैसे आइटमो को ड्रैग एवं ड्रॉप करने के लिए टूलबार का उपयोग करते है। इसकी विशेषता IDE (Integrated development Environment) हैं जो एप्लीकेशन कम्पाइलर (Application Compiler) तथा रन टाइम को सपोर्ट करते हैं। विजुअल स्टूडियो, जावा इसके उदाहरण है।

असेम्बलर, कम्पाइलर और इन्टरप्रिटर (Assembler, Compiler and Interpreter)

कम्प्यूटर, मशीन भाषा (Machine Language) के अलावा किसी अन्य कम्प्यूटर भाषा (Computer Language) में लिखे गए किसी भी प्रोग्राम को नहीं समझ पाता है अन्य भाषाओं में लिखे गए प्रोग्राम्स को क्रियान्वित (Execute) करने से पूर्व इन प्रोग्राम्स का अनुवाद (Translate) मशीन भाषा में करना आवश्यक होता है । इस तरह के अनुवाद (Translate) को सॉफ्टवेयर की सहायता से किया जाता है ऐसे प्रोग्राम / सॉफ़्टवेयर जो मशीन भाषा (Machine Language) के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा में बने प्रोग्राम को मशीन भाषा में बदलते है ऐसे प्रोग्रामो को लेंगवेज ट्रांसलेटर (Language Translator) कहा जाता है। लैंग्वेज ट्रांसलेटर, सिस्टम सॉफ़्टवेयर की श्रेणी में आते हैं।

यह तीन प्रकार के होते हैं:-
     असेम्बलर (Assembler)
     कम्पाइलर (Compiler)
     इन्टरप्रेटर (Interpreter)

असेम्बलर (Assembler)

एक ऐसा प्रोग्राम जो एसेम्बली भाषा में लिखे प्रोग्राम को मशीन भाषा के प्रोग्राम में बदलता है उसे एसेम्बलर (Assembler) कहा जाता है।

प्रोग्राम एसेम्बलर

असेम्बलर, एसेम्बली भाषा में लिखे प्रोग्राम जिसे सोर्स कोड (Source Code) कहा जाता को मशीन कोड प्रोग्राम जिसे ऑब्जेक्ट कोड (Object Code) में अनुवादित (Translate) करता है।

कम्पाइलर (Compiler)

कम्पाइलर किसी कम्प्यूटर के सिस्टम साफ्टवेयर का भाग होता है। एक कंपाइलर एक कंप्यूटर प्रोग्राम है जो उच्च-स्तरीय भाषा (High Level Language) में लिखे गए प्रोग्राम को मशीन भाषा (Machine Language) में अनुवाद(Translate) करता है। उच्च-स्तरीय प्रोग्राम को 'सोर्स कोड' (Source Code) कहा जाता है। कंपाइलर को सोर्स कोड को मशीन कोड या कम्पाइल्ड कोड (Compiled Code) में अनुवाद करने के लिए उपयोग किया जाता है। कंपाइलर प्रोग्राम को चलाने (Execute) से पूर्व सम्पूर्ण सौर्स कोड को भाषा सम्बन्धी त्रुटियों जिन्हें सिंटेक्स एरर (Syntex Error) कहा जाता के लिए जांचा जाता है अगर कोई सिंटेक्स एरर आती है तो उसे दूर किया किया जाता है।
यह प्रक्रिया तब तक की जाती है जब तक की पूरा प्रोग्राम त्रुटि रहित (Error Free) नहीं हो जाता है। प्रोग्राम के त्रुटि रहित होने के बाद इसे इसे कम्पाइलर द्वारा कम्पाइल किया जाता है तथा ऑब्जेक्ट कोड (Object Code) / मशीन कोड (Machine Code) प्राप्त किया जाता है। कम्पाइलर द्वारा प्राप्त ऑब्जेक्ट कोड (Object Code) सामान्यतः EXE फाइल के रूप में होता है। ऑब्जेक्ट कोड प्राप्त होने के बाद इसे कम्पाइल किए बिना क्रियान्वित (Execute) / Run किया जा सकता है।

What is compiler?

हर प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के लिए अलग-अलग कम्पाइलर होता है पहले वह हमारे प्रोग्राम के हर कथन या आदेश की जांच करता है कि वह उस प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के व्याकरण के अनुसार सही है या नहीं ।यदि प्रोग्राम में व्याकरण की कोई गलती नहीं होती, तो कम्पाइलर के काम का दूसरा भाग शुरू होता है ।यदि कोई गलती पाई जाती है, तो वह बता देता है कि किस कथन में क्या गलती है । यदि प्रोग्राम में कोई बड़ी गलती पाई जाती है, तो कम्पाइलर वहीं रूक जाता है। तब हम प्रोग्राम की गलतियाँ ठीक करके उसे फिर से कम्पाइलर को देते हैं।

इन्टरप्रेटर (Interpreter)

इन्टरपेटर भी कम्पाइलर की भांति कार्य करता है। अन्तर यह है कि कम्पाइलर पूरे प्रोग्राम को एक साथ मशीनी लैंग्वेज में बदल देता है और इन्टरपेटर प्रोग्राम की एक-एक लाइन को मशीनी लैंग्वेज में परिवर्तित करता है। इंटरप्रेटर एक बार में प्रोग्राम की एक पंक्ति (Line) का अनुवाद करता है और इसे क्रियान्वित (Execute) करता है। फिर यह प्रोग्राम के अगली पंक्ति (line) को रीड करता है और अनुवाद करता है और इसे क्रियान्वित (Execute) करता है।

What is Interpreter?

कम्पाइलर के विपरीत, जो पहले प्रोग्राम को कम्पाइल करता है तथा फिर क्रियान्वित(Execute) करता है जबकि इंटरप्रेटर प्रोग्राम का लाइन दर लाइन अनुवाद करता है तथा साथ की साथ इसे क्रियान्वित(Execute)करता है।

कम्पाइलर और इन्टरप्रिटर में अन्तर (Difference between Compiler & Interpreter)

इन्टरप्रिटर उच्च स्तरीय लैंग्वेज में लिखे गए प्रोग्राम की प्रत्येक लाइन के कम्प्यूटर में प्रविष्ट होते ही उसे मशीनी लैंग्वेज में परिवर्तित कर लेता है, जबकि कम्पाइलर पूरे प्रोग्राम के प्रविष्ट होने के पश्चात उसे मशीनी लैंग्वेज में परिवर्तित करता है ।














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उपरोक्त नोट्स आपको कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग लैंग्वेज क्या है? प्रोग्रामिंग भाषाओ के प्रकार (Types of Programming Language), मशीन भाषा (Machine Language) असेम्बली लैंग्वेज (Assembly Language) हाई लेवल लैंग्वेज़ (High Level Language) असेम्बलर, कम्पाइलर और इन्टरप्रिटर आदि के बारे में जानकारी हेतु सहायक होंगे. अगले टॉपिक में कंप्यूटर कम्युनिकेशन (Computer Communication) का अध्ययन करेंगे. 

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